वन्देमातरम जय हिन्द

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सोमवार, 12 सितंबर 2011

जय बोलो बईमान की




मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की !
प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,
जय बोल बेईमान की !
महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेस
पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,
जय बोल बेईमान की !
डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम,
कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम।
धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की,
जय बोलो बेईमान की !
दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर,
डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर।
नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की,
जय बोलो बेईमान की !
चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,
आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।
बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,
जय बोलो बईमान की !
वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश,
छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस।
मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की,
जय बोलो बईमान की !
खड़े ट्रेन में चल रहे, कक्का धक्का खायँ,
दस रुपए की भेंट में, थ्री टायर मिल जायँ।
हर स्टेशन पर हो पूजा श्री टी.टी. भगवान की,
जय बोलो बईमान की !
बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर,
घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर।
अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की,
जय बोलो बईमान की !
मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल,
मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल।
पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की,
जय बोलो बईमान की !
न्याय और अन्याय का, नोट करो डीफरेंस,
जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस।
निर्बल धक्के खाएँ, तूती होल रही बलवान की,
जय बोलो बईमान की !
पर-उपकारी भावना, पेशकार से सीख,
दस रुपए के नोट में बदल गई तारीख।
खाल खिंच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की,
जय बोलो बईमान की !
नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर,
बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर।
गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की,
जय बोलो बईमान की !

काका की यह रचना आज के समय में एकदम सटीक बैठती है . आप भी पढ़िए और आनंद उठाइए .

27 टिप्‍पणियां:

रुनझुन ने कहा…

हाँ सचमुच अच्छी है ये कविता... आज के समय के हिसाब से तो एकदम परफेक्ट!... सही कहा न मैंने..?

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सचमुच सटीक...
काका को नमन...
सादर आभार...

मनोज कुमार ने कहा…

मुझे यह बहुत अच्छी लगी।

रविकर ने कहा…

खनन उपक्रम का, बेबस राजधर्म का
लूट-तंत्र बेशर्म का, सुवाद अंगूरी है |
राजपाट पाय-जात, धरती का खोद-खाद
लूट-लूट खूब खात, यही तो जरुरी है |
कहीं कांगरेस राज, भाजप का वही काज
छोट भी आवे न बाज, भेड़-चाल पूरी है |
चट्टे-बट्टे थैली केर, सारे साले एक मेर,
देर है या है अंधेर, पूरी मजबूरी है ||

दिगम्बर नासवा ने कहा…

काका का कहा लंबे समय तक सार्थक रहेगा अपने देश में ...

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..काका को नमन

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत सच कहा है...बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति..

सदा ने कहा…

वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

nilesh mathur ने कहा…

बेहतरीन रचना।

Atul Shrivastava ने कहा…

लगता है काका हाथरसी जी भविष्‍यवक्‍ता थे।
उन्‍होंने जो उस दौर में लिखा था वह आज प्रासंगिक नजर आ रहा है।
आभार इस रचना को प्रस्‍तुत करने के लिए।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत पहले पढ़ी यह रचना, आज भी उतनी ही सटीक और प्रासंगिक है. इस रचना को पढवाने के लिये आभार.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

बाप रे....अब तो बोलना ही पडेगा.....जय बोलो बेईमान की....!!!

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति| इस रचना को पढवाने के लिये आभार|

कुमार राधारमण ने कहा…

हमारा समय ऐसा ही है। संक्रमण न जाने कब ख़त्म होगा,होगा भी या नहीं।

virendra sharma ने कहा…

सजग प्रहरी सी रचना ..सर्व कालिक सार्वदेशिक रचना ,ग्लोबी भ्रष्टाचार सी .

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

बहुत समय बा को पढ़ने का द ककका जी को पढ़ पाए.आभार.

Amrita Tanmay ने कहा…

आनद आ गया .शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

रविकर ने कहा…

अथ आमंत्रण आपको, आकर दें आशीष |
अपनी प्रस्तुति पाइए, साथ और भी बीस ||
सोमवार
चर्चा-मंच 656
http://charchamanch.blogspot.com/

वाणी गीत ने कहा…

सटीक व्यंग्य ...
जय हो !

कविता रावत ने कहा…

वर्तमान हालातों से रु-ब -रु कराती सुन्दर चितन मननशील रचना

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

रेखा जी सच में काका जी की एक एक बातें सटीक हैं व्यंग्य का पुट कटाक्ष ...सुन्दर
बधाई आप को लाजबाब ...आप के समर्थन के लिए भी आभार
धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
भ्रमर ५
दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर,
डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर।
नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की,
जय बोलो बेईमान की !

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

रेखा जी अभिवादन बहुत सुन्दर सार्थक और सटीक ..आँख खोल देने वाली रचना ..काश उनकी भी आँखें ...
भ्रमर ५
न्याय और अन्याय का, नोट करो डीफरेंस,
जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस।
निर्बल धक्के खाएँ, तूती होल रही बलवान की,
जय बोलो बईमान की !

अभिषेक मिश्र ने कहा…

काका जी की इस चुटीली रचना को साझा करने का आभार.

Smart Indian ने कहा…

भारत के सन्दर्भ में काका की रचना वाकई कालजयी लगती है, आभार!

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

काका की रचनाए वाकई कालजयी
सुन्दर

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

काका की रचनाए वाकई कालजयी
सुन्दर