"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।"
"जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"
"लहराता था पानी, हाँ-हाँ यही कहानी।"
गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्षी की हानी।"
"हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!"
चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"
"मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"
हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।"
"सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"
राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लँ तेरी बानी"
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"
"न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।"
यह मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता है जिसमे यशोधरा अपने पुत्र राहुल को एक कहानी सुना रही है. आज कल तो शायद माताएं ऐसी कहानी नहीं सुनाती हैं . यह कविता ही एक बार और पढ़कर आनंद लीजिये.
19 टिप्पणियां:
बचपन की यादें ताजा हो गईं...यह कविता बचपन में पढ़ी थी फिरसे पढ़ाने के लिए आभार
अच्छी रही कहानी आलकी क्रुपा से हमने भी जानी
मिडल स्कूल के दिनों में पढ़ी थी यह कविता।
वर्षों बाद आज इसे पढ़ना एक सुखद अनुभूति समान था।
आभार आपका। इस कविता को फिर से याद दिलाने के लिए।
"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"
बहुत सुंदर संवेदनशील भाव समेटे हैं
मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है .क़ानून माने तब न सरकार ,आज ज्यादा प्रासंगिक है ये रचना .
ये कहानियां संस्कारों की नींव हैं-बशर्ते अब इस शब्द का हमारे लिए कोई मायने रह गया हो।
good presentation.
मैथली शरण गुप्त की रचना पढवाने के लिए आभार
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
http://baaludyan.hindyugm.com/2009/05/maa-kah-ek-kahani-maithili-sharan-gupt.html
shaayad ye link aaplogon is kavita ko sunvaane me madad kare .kuch varsh poorv ek prayaas kiya tha hum aur humaari beti ne bhi ...........
बचपन में पढ़ी रचना फिर से पढ़ाने के लिए आभार !
बहुत ही सुन्दर भावों से भरी, प्रेरणादायक कविता है... मुझे बेहद पसंद भी है... जब मैं यू.के.जी. में पढ़ती थी तभी से ये कविता मुझे पूरी याद है... "यशोधरा" नामक बैले में मैं यशोधरा बनी थी और मुझे सिर्फ़ अपनी कुछ लाइनें ही याद करनी थी लेकिन कविता मुझे इतनी अच्छी लगी कि जादू हो गया और मुझे पूरी कविता याद हो गयी... आज अपनी इस प्रिय कविता को यहाँ देखकर मैं पुरानी यादों में खो गयी.....थैंक्यू!
नीलमजी आपका प्रयास बेहतरीन था ...मुझे काफी पसंद आया ....आगे भी ऐसे प्रयास जारी रखिए
nice poem
इसे स्कूल मे पढा था, आज पुन मैथली शरण गुप्त की रचना पढवाने के लिए आभार.
सादर,
डोरोथी.
मेरे ब्लॉग जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का बहुत शुक्रिया.......अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर.......बहुत सुन्दर कविता को आपने बाँटा है........
रेखा जी आप की यह पोस्ट अद्भुत है |बधाई और शुभकामनायें |
रेखा जी आप की यह पोस्ट अद्भुत है |बधाई और शुभकामनायें |
वाह बहुत सुंदर, कोमल.
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